Saturday, April 18, 2015

HINDI POEM

देह मेरी ,
हल्दी तुम्हारे नाम की ।
हथेली मेरी ,
मेहंदी तुम्हारे नाम की ।
सिर मेरा ,
चुनरी तुम्हारे नाम की ।
मांग मेरी ,
सिन्दूर तुम्हारे नाम का ।
माथा मेरा ,
बिंदिया तुम्हारे नाम की ।
नाक मेरी ,
नथनी तुम्हारे नाम की ।
गला मेरा ,
मंगलसूत्र तुम्हारे नाम का ।
कलाई मेरी ,
चूड़ियाँ तुम्हारे नाम की ।
पाँव मेरे ,
महावर तुम्हारे नाम की ।
उंगलियाँ मेरी ,
बिछुए तुम्हारे नाम के ।
बड़ों की चरण-वंदना
मै करूँ ,
और 'सदा-सुहागन' का आशीष
तुम्हारे नाम का ।
और तो और -
करवाचौथ/बड़मावस के व्रत भी
तुम्हारे नाम के ।
यहाँ तक कि
कोख मेरी/ खून मेरा/ दूध मेरा,
और बच्चा ?
बच्चा तुम्हारे नाम का ।
घर के दरवाज़े पर लगी
'नेम-प्लेट' तुम्हारे नाम की ।
और तो और -
मेरे अपने नाम के सम्मुख
लिखा गोत्र भी मेरा नहीं,
तुम्हारे नाम का ।
सब कुछ तो
तुम्हारे नाम का...
नम्रता से पुछती हूँ..
आखिर तुम्हारे पास...
क्या है मेरे नाम का?
एक लड़की ससुराल चली गई।
कल की लड़की आज बहु बन गई.
कल तक मौज करती लड़की,
अब ससुराल की सेवा करना सीख गई.
कल तक तो टीशर्ट और जीन्स पहनती लड़की,
आज साड़ी पहनना सीख गई.
पिहर में जैसे बहती नदी,
आज ससुराल की नीर बन गई.
रोज मजे से पैसे खर्च करती लड़की,
आज साग-सब्जी का भाव करना सीख गई.
कल तक फुल स्पीड़ स्कुटी चलाती लड़की,
आज बाईक के पीछे बैठना सीख गई.
कल तक तो तीन वक्त पूरा खाना खाती लड़की,
आज ससुराल में तीन वक्त
का खाना बनाना सीख गई.
हमेशा जिद करती लड़की,
आज पति को पूछना सीख गई.
कल तक तो मम्मी से काम करवाती लड़की,
आज सासुमां के काम करना सीख गई.
कल तक भाई-बहन के साथ
झगड़ा करती लड़की,
आज ननद का मान करना सीख गई.
कल तक तो भाभी के साथ मजाक करती लड़की,
आज जेठानी का आदर करना सीख गई.
पिता की आँख का पानी,
ससुर के ग्लास का पानी बन गई.
फिर लोग कहते हैं कि बेटी ससुराल जाना सीख
गई.

शेयर टू एवरी वूमन..!!

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